On Raksha Bandhan (रक्षा बंधन पे )

शायद ये किसी का कसूर न होये हाथ हमेशा भाई के मुट्ठी पे न होअपने पैर पे खड़े होके जीना सीखा हैतू आगे भी कमज़ोर या मजबूर न हो Iकर आशा कि ये दुनिया बड़ी हो जायेहर लिंग को समान इज़्ज़त मिल जायेये रक्षा के बंधन बिन रिवाजइंसान को इंसान समझ दी जाये I WrittenContinue reading “On Raksha Bandhan (रक्षा बंधन पे )”